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💐 दर्शन शास्त्रों का तुलनात्मक अध्ययन 💐
1 धर्म एवं धर्मी की सत्ता
(१)वेदांते -धर्मी(व्यावहारिक दृष्टि से घट पट आदि एवं परमार्थातः निर्विशेष ब्रह्म) ही सत् है धर्म (लौकिक दृष्टि से घटादि के आकार प्रकार आदि एवं शास्त्रीय
दृष्टि से ब्रह्म का सविशेष रूप) सत् नहीं।
(२)माध्यमिक बौद्धे- मात्र धर्म (लौकिक दृष्टि से घटादि के आकार प्रकारादि एवं शास्रीय दृष्टि से जीव को होने वाले दुःख सुख ज्ञानादि(व्यावहारिक सत्) हैं।धर्मी(घटादि एवं जीवात्मा)वंध्यापुत्रवत् असत् हैं।
(३)सांख्ये- धर्मी ही धर्म के रूप में परिणत हो जाता है मिट्टी से घड़े की तरह अतः दोनों एक ही है।अर्थात् धर्म-रूप से अनित्य होने पर भी धर्मी-रूप से नित्य रहता है।
(४)न्याये वैशेषिके च- सांख्यमत की तरह अनित्य तो है ,पर अपने धर्मी से उत्पन्न होता है अतः सांख्यमत की तरह अपने धर्मी से अभिव्यक्त (पत्थर से मूर्ति की तरह) नहीं होता अतः सांख्यमत की तरह कारणरूप से भी धर्म (कार्य)नित्य नहीं ।वेदान्तमत की तरह धर्मी का विवर्तरूप अनिर्वचनीय(रस्सी में सांप की तरह रस्सी का अज्ञान जिसे है उसकी व्यावहारिक दृष्टि से सत्य परंतु जिसे रस्सी का ज्ञान है उसकी पारमार्थिक दृष्टि( होने )से असत् ) भी नही होता है धर्म।न बौद्धमत की तरह कारणरहित एवं व्यावहारिक-मात्र-सत् है धर्म। अपितु धर्म एवं धर्मी अलग अलग रूप है।किंच धर्मी नित्य है। ध्यान रहे कि न्याय वैैशेशिक में धर्म अनित्य तो है पर असत् नहीं
(३)सांख्ये- धर्मी ही धर्म के रूप में परिणत हो जाता है मिट्टी से घड़े की तरह अतः दोनों एक ही है।अर्थात् धर्म-रूप से अनित्य होने पर भी धर्मी-रूप से नित्य रहता है।
(४)न्याये वैशेषिके च- सांख्यमत की तरह अनित्य तो है ,पर अपने धर्मी से उत्पन्न होता है अतः सांख्यमत की तरह अपने धर्मी से अभिव्यक्त (पत्थर से मूर्ति की तरह) नहीं होता अतः सांख्यमत की तरह कारणरूप से भी धर्म (कार्य)नित्य नहीं ।वेदान्तमत की तरह धर्मी का विवर्तरूप अनिर्वचनीय(रस्सी में सांप की तरह रस्सी का अज्ञान जिसे है उसकी व्यावहारिक दृष्टि से सत्य परंतु जिसे रस्सी का ज्ञान है उसकी पारमार्थिक दृष्टि( होने )से असत् ) भी नही होता है धर्म।न बौद्धमत की तरह कारणरहित एवं व्यावहारिक-मात्र-सत् है धर्म। अपितु धर्म एवं धर्मी अलग अलग रूप है।किंच धर्मी नित्य है। ध्यान रहे कि न्याय वैैशेशिक में धर्म अनित्य तो है पर असत् नहीं